Saturday, January 29, 2011

एक ख़त माननीय स्वर्गीय हरी विष्णु कामथ के नाम

दिनांक: २१/०१/२०११
"कोई है , कोई है, जिसकी जिंदगी दूधसे धोई है, दूध किसी का धोबी नहीं होता!!" --स्व. भवानी प्रसाद मिश्र

"मैं दुनिया मैं एक ही तानाशाह को स्वीकार करता हूँ और वो है मेरी अंतरात्मा की आवाज" -महात्मा गाँधी (हिंद स्वराज्य)


"कोई हाथ भी ना मिलाएगा, यो गले मिलोंगे तपाक से,
ये नए मिजाज़ का शहर है, ज़रा फासले से मिला
करो" -बशीर बद्र


आदरणीय कामथ जी ,
सादर जय हिंद,
आजादी का ६१ वाँ गणतंत्र दिवस आ रहा है , इसकी पूर्व संध्या पर स्वाधीनता संग्राम सेनानियों सहित संविधान निर्माताओं की याद आ रही है स्वाधीनता संग्राम में नर्मदांचल ने सिपाही तो बहुत दिए, परन्तु देश के संविधान निर्माण में नर्मदांचल की भागीदारी का सम्मान कामथ जी आपके ही कारण मिला था सुभाष जयंती २३ जनवरी को आ रही है, आजाद हिंद फौज के सेनापति नेताजी सुभाष बोस के सहपाठी, सचिव और सिपाही, कदम कदम मिलाये जा, ख़ुशी के गीत गए जा, ये ज़िन्दगी है कौम की तू कौम पर लुटाये जा, के अमर गायक श्री कामथ जी आपको तहे दिल से सलाम


आदरणीय कामथजी,
आज देश का लोकतंत्र संकट में है, आज़ादी के बाद आपातकाल में जब देश के लोकतंत्र पर संकट आया था, तब हमारे पास गाँधी परम्परा के अंतिम नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण मौजूद थे, आज देश में बड़े बड़े राजनीतिक दल हैं जिनके बड़े धुरंधर नेता हैं, अनेक ऊँची अदालतें हैं, बड़े बड़े संविधान विशेषज्ञ और कानूनविद हैं देश के पास आज़ादी के बाद शिक्षा, धन, फौजी ताकत भी बहुत बढी है कुल मिलाकर भौतिक रूप से देश आज़ादी के पहले की तुलना में काफी आगे बढ़ गया है , लेकिन नैतिक और चारित्रिक रूप से देश कंगाल हो गया है आज देश के पास कोई गाँधी-विनोबा या जयप्रकाश नहीं है हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन के नेता आज के नेताओं की तुलना में ना तो इतने शिक्षित थे, ना राजनीति के इतने चतुर खिलाड़ी उनके पास धन भी नहीं था, लेकिन एक ऐसा अनमोल धन उनके पास था जिसके सामने आज के सारे नेता भिखारी से दिखाई देते हैं, उनके पास नैतिक बल था जनता का अटूट विश्वास था अपने नेताओं पर देश के लोगों ने अनेक कष्ट सहन किये लेकिन अपने नेता के साथ खड़े रहे आज़ादी के बाद जब तक स्वाधीनता आन्दोलन में गाँधी के द्वारा गढ़े हुए सिपाही मौजूद रहे, वे सत्ता में रहे या विरोधी दल में, लेकिन उनकी आस्था जनता में बनी रही और जनता की आस्था उनमे बनी रही आज़ादी के बाद विभाजन के कारण लाखो लोग भयंकर दंगों के बीच शरणार्थी के रूप में देश में आये, अभूतपूर्व संकट था लेकिन गाँधी के सिपाही के रूप में हमारे बीच जवाहरलाल, सरदार पटेल और मौलाना आजाद मौजूद थे देश में लोकतन्त्र बना रहा और देश ने उस संकट को पार किया १९६२ में चीन का आक्रमण हो , या पाकिस्तान के द्वारा किये गए अनेक आक्रमण,उस दौरान गाँधी के सिपाही सत्ता और विरोधी दल के रूप में देश की संसद में मौजूद थे देश उन संकटों से भी निकल गया, स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के समय देश में अभूतपूर्व खाद्य संकट आया था शास्त्री के आवाहन पर देश की जनता ने सप्ताह में एक दिन उपवास कर उस संकट को भी पार किया १९७४ मैं स्वर्गीय इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लगाया , संविधान को रद्दी की टोकरी में फेककर देश में तानाशाही की नापाक कोशिश की जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देश ने तानाशाही को उखाड़ फेंका और देश में संविधान की सत्ता वापस लौटी, और लोकतंत्र पुनः स्थापित हुआ आदरणीय कामथ जी, जब गाँधी की शहादत हुई थी , तब मेरी उम्र ७ वर्ष की थी और में इस योग्य नहीं था , लेकिन इतनी याददाश्त बाकी है, कि राजाओं के राजमहल से लेकर कलिया बाई और करीमन बी की झोंपड़ी में भी ऐसा मातम छा गया था कि किसी ने भोजन नहीं किया था प्रत्येक भारतवासी को लगता था की हम सबने अपना बापू खो दिया है हिन्दू धर्म संस्कृति रक्षा के नाम पर संघ परिवार के रूप में हिन्दू तालिबान कितना भी देश भक्ति का नारा लगाये और यह प्रामाणित करने की कोशिश करें की सुभाष बोस जैसे संघ परिवार की देंन थे , लेकिन पूरा देश जानता है , कि सुभाष बाबू न केवल स्वाधीनता आन्दोलन के सिपाही थे परन्तु नयी पीढ़ी शायद यह नहीं जानती की कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनको सम्मानित मध्य प्रदेश में ही कांग्रेस अधिवेशन में ही किया गया था गाँधी को राष्ट्रपिता ना मानने वाले संघ परिवारी ये ध्यान रखे कि वे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही थे जो अपने आजाद हिंद फौज को दिल्ली चलो का आदेश देते हुए गाँधी को राष्ट्रपिता कहकर प्रणाम कर रहे थे

आदरणीय कामथ जी,
आज़ादी के बाद जवाहरलाल नेहरु की सरकार से लेकर इंदिरा गाँधी के पतन तक का इतिहास मैंने पूरे होशो हवास में देखा और समझा है यह मेरा सौभाग्य था की मैं १९७४ के संपूर्ण क्रान्ति आन्दोलन का एक सिपाही बना संविधान सभा के सदस्य के रूप में आपने ना केवल देश को संविधान दिया, परंतु संसद सदस्य के रूप में, उसकी मर्यादाओं का पूरा सम्मान भी किया आप हमेशा विरोधी दल में रहे, लेकिन जनता ने सत्तारूढ़ दल को देश की बागडोर सम्हालने की इजाज़त दी है, इसको आपने सदा अपने आचरण से प्रमाणित किया
आज हमारा लोकतंत्र और संविधान ठिठक गया है अब यूपीए के प्रधानमंत्री के रूप में माननीय मनमोहन सिंह हों या विरोधी दल के नेता के रूप में माननीय सुषमा स्वराज, इनमें से किसी को भी स्वाधीनता के सिपाही या संविधान निर्माता का सम्मान प्राप्त नहीं है इन्हें ये हक हासिल नहीं है कि स्वाधीनता आन्दोलन के सिपाहियों और संविधान निर्माताओं के रूप में हमारे पुरखों ने हमें जो संविधान और लोकतंत्र के रूप में हमें जो विरासत दी है उसकी ये धज्जियाँ उड़ायें मैं आपको यह पत्र न तो किसी पार्टी के नेता के रूप में लिख रहा हूँ और ना मैं स्वयं किसी पार्टी मैं हूँ आपके जैसे हमारे पुरखों ने हमें संपूर्ण प्रभुता संपन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य का सम्माननीय नागरिक बनाया है उस अधिकार से सुसज्जित होकर यह पत्र अपने संविधान निर्माता को लिख रहा हूँ
कामथ जी, आपको यह जानकार विस्मय होगा की मुझे तब कोई व्याकुलता नहीं हुई थी जब सीमा पार से आये हुए आतंकवादियों ने हमारी संसद पर हमला किया था अगर वह सफल हो जाता तो हमारे संसद भवन को चोट पहुँचती या हमारे कुछ सांसद और मंत्रीगण स्वर्गवासी हो जाते लेकिन हमारा लोकतंत्र और संविधान सुरक्षित रहता आज हमला बाहरी आतंकवादियों से नहीं, हमारे चुने हुए सांसदों से है जो आत्मघाती हमलावरों के रूप में उन्ही संवेधानिक संस्थाओं को ध्वस्त कर रहे हैं जिनका निर्माण हमारे संविधान ने किया है संसद का पूरा सत्र विरोधी दल के नेताओं ने 2G स्पेक्ट्रुम घोटाले की जाँच संयुक्त संसदीय समिति करे, इस मांग को करते हुए नष्ट कर दिया संयुक्त संसदीय समिति हो, या PAC या कोई और समिति हों , हैं तो संसद के ही अंग , जब संसद ही नहीं रहेगी , तो ये समितियां कहाँ से आयेंगी संसद देश की राष्ट्रीय पंचायत है माननीय मनमोहन सिंह और श्रीमती सुषमा स्वराज , प्रधानमंत्री हो या विरोधी दल की नेता, सबसे पहले ये जनता के द्वारा चुने गए संसद सदस्य हैं यह अजीब विरोधाभास है कि संसद चलने ही नहीं देंगे , कृपया इन दोनों को संविधान निर्माता के रूप में उनकी हैसियत दिखा दें , की इस देश में एक संसद है इसलिए वो प्रधानमंत्री और विरोधी दल की नेता हैं उन्हें समझाइये कि संसद इस देश के लोकतंत्र की आत्मा है और अपने व्यक्तिगत या दलीय हितों के कारण भारत राष्ट्र उन्हें अपनी आत्मा को नष्ट करने की इजाज़त नहीं दे सकता संसद चलने दीजिये , बहस करिए, संविधान में आपको यह अधिकार है की अविश्वास प्रस्ताव पेश कीजिये और मनमोहन सिंह सरकार को हटा दीजिये अगर आपका बहुमत नहीं है और विरोधी दल यह समझता है , कि उसकी मांग जायज़ है तो जनता मैं लौटकर आये, समय आने पर जनता अपना निर्णय सुना देगी प्रतिपक्ष के नेता क्या यहाँ भूल गए, की आपताकाल में भी संसद थी और इंदिराजी को पूर्ण बहुमत प्राप्त था, लेकिन जयप्रकाश नारायण ने माननीय सांसदों को प्रलोभन देकर सरकार नहीं गिराई थी दिनकर जी के गीत की पंक्तियाँ दोहराते हुए लाखों की सभा मैं लोकनायक ने कहा था

दो राह समय के रथ का घर घर नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है


और इस देश के विशाल लोकमत ने इंदिरा गाँधी की तानाशाही को उखाड़ कर फेंक दिया था विरोधी दल के नेताओं को इस देश की जनता पर इतना अविश्वास क्यों हैं गाँधी के नेतृत्व में इस देश की जनता ने अंगरेजी साम्राज्य को, और जयप्रकाश के नेतृत्व में इंदिरा गाँधी की सरकार को उखाड़ कर फ़ेंक दिया था, तो मनमोहन सिंह क्या चीज़ हैं
कामथ साहब, समस्या है नैतिक साहस की, आत्मबल की यह नैतिक आत्मबल किसी बड़ी पार्टी के अध्यक्ष होने से प्राप्त नहीं होता, कितनी भी सम्पति सत्ता हो, उससे यह प्राप्त नहीं होता लोकनायक जयप्रकाश के पास कोई पार्टी नहीं थी, धन भी नहीं था, सत्ता भी नहीं थी, केवल नैतिक बल था, इसलिए सत्तारूढ़ इंदिरा गाँधी को उखाड़ फ़ेंक दिया माननीय आडवानी जी जानते हैं की उनमे इतना नैतिक साहस और आत्म बल नहीं है की वे जनता के बीच जायें, और जनता उनके पीछे हो ले राम जन्भूमि रथयात्रा , कंधार विमान अपहरण काण्ड ऐसे अनेक बदनुमा दाग उनकी चादर को बदसूरत बना रहे हैं उनकी चादर सफ़ेद नहीं है स्वयं संघ परिवार उन्हें 'जिन्ना' की उपधि से सुशोभित कर चुका है
कामथ साहब,विरोधी दल में केवल माननीय शरद यादव जी ही ऐसे हैं जिनकी चादर साफ़ है, वे गाँधी, लोहिया और जयप्रकाश की विरासत के उतराधिकारी हैं , उनमें यह नैतिक साहस है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ जनमत खड़ा करें अभी, बिहार विधान सभा चुनाव ने यह प्रामाणित कर दिया कि जयप्रकाश आन्दोलन के सिपाही नितीश कुमार और शरद यादव की पीठ पर सवार होकर भाजपा ने चुनावी वैतरणी पार की है

आदरणीय कामथ साहब,
मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि मैं जिस समाज में रह रहा हूँ वह गाँधी और जयप्रकाश के जमाने का समाज नहीं है यह हकीकत है कि यह समाज उस दौर से अधिक शिक्षित, संपन्न और तकनीकी विकास के कारण अधिक जानकारी से लैस है लेकिन भारत ने अपने दस हज़ार वर्षों के इतिहास में जो सामाजिक मूल्य बनाये थे, वो एक एक करके यह पूंजी वादी महाजनी सभ्यता नष्ट कर रही है हमारे पूर्वजों ने हमारी संस्कृति का यह मूलमंत्र हमें दिया था,

सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया

यानी सबके हित में ही हमारा हित है लेकिन आज व्यक्ति के हित समाज के हित से टकराने लगे हैं यह पूंजीवादी सभ्यता व्यक्ति को आत्म केन्द्रित बना रही है हम यह भूल गए कि हम एक लोकतंत्र के नागरिक हैं लोकतंत्र में जनता ही यह तय करती है कि उसका प्रतिनिधि कौन हों लेकिन हम सामाजिक हित भूल कर व्यक्तिगत लाभ-हानि का विचार करके गुंडों मवालियों को विधायक और सांसद के रूप में भेज रहे हैं कामथ साहब, जब आप संसद सदस्य थे तब संसद और विधान सभाएं सदाचारी विद्वान और सच्चे जनसेवकों से भरी रहती थी आज चुनाव दर चुनाव इनमें असामाजिक तत्वों की संख्या बढ़ रही है यह बड़ा विरोधाभास है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है , लेकिन दूसरी और देश कि आम जनता का एक बड़ा हिस्सा बीस रुपये रोज पर गुजारा कर रहा है
मेरी मजबूरी है की मैंने हिन्दू धर्म को गीता, उपनिषद्, विवेकानंद , गाँधी और विनोबा की रोशनी में जाना है महान इस्लाम धर्म को मैंने हज़रात उमर, मौलाना आजाद और अशफाक उल्लाह की रोशनी में समझने की कोशिश की है मैं, गाँधी को अपना आदर्श मानने वाला, जयप्रकाश के संपूर्ण क्रांति आन्दोलन का सिपाही, देश के चुने हुए सांसदों द्वारा लोकतंत्र पर किया जा रहे इस अन्याय को देखकर खामोश नहीं रहा सकता
में अपने मन की पीड़ा स्वर्गीय भवानी प्रसाद जी मिश्र की इस कविता के रूप में व्यक्त कर रहा हूँ


साधारणतया

मौन अच्छा है, किन्तु मनन के लिए,
जब शोर ही चारों और हों,
सत्य के हनन के लिए
तब तुम्हे अपनी बात
ज्वलंत शब्दों में कहनी चाहिए,
सर कटाना पड़े या ना पड़े
तैय्यारी तो उसकी होनी चाहिए

मैं और कुछ नहीं कर सकता सिवाय इसके कि मैं इस अन्याय को मौन देखते रहने का पाप न करूँ इसलिए मैं सुभाष जयंती २३ जनवरी दोपहर १२ बजे से २५ जनवरी दोपहर १२ बजे तक उपवास करूंगा मेरा यह उपवास न तो किसी के खिलाफ है और ना किसी के पक्ष में, यह केवल आत्मशोधन के लिए है

"आज मेरा देश पूरे लाम पर है, जो जहां पर है देश के काम पर है" के गायक स्व. कविवर राजेंद्र जी अनुरागी को सादर समर्पित