पता नहीं प्रभु है या नहीं
किन्तु उस दिन यह सिद्ध हुआ
जब कोई भी मनुष्य
अनासक्त होकर चुनौती देता है इतिहास को
उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है
नियति नहीं है पूर्व निर्धारित
उसको हर क्षण मानव-निर्णय बनाता-मिटाता है ।
(धर्मवीर भारती-अधां युग)
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का जन्म, भारतीय नवजागरण के सांस्कृतिक आंदोलन के गर्भ से हुआ । जिस
सांस्कृतिक आंदोलन के नेता राजा राममोहन राय, केशवचन्द्र सेन, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, श्रीमति एनीबेसेंट, लोकमान्य तिलक, और योगीराज अरविंद हों उसके राजनैतिक नेता महात्मा गाँधी ही हो सकते थे । भारत की जनता ने लगभग ५००० वर्ष की अपनी साधना के बाद अपने महान हिन्दू धर्म को रामकृष्ण परमहंस के रूप में साकार देखा । ऐसा लगता है रामकृष्ण परमहंस ही गाँधी के रूप में अवतरित हुए । कुछ इसी तरह की भविष्यवाणी योगीराज अरविंद ने अलीपुर जेल से रिहाई के बाद अपने एतिहासिक उत्तरपाड़ा भाषण में की थी । गाँधी का जन्म और विकास तो नव जागरण की भूमि पर हुआ लेकिन पैगम्बरों और अवतारों की भाँति वे काल को खींचकर अपने पीछे ले गये और उस उक्ति को सिद्ध किया कि महापुरुषों के कारण इतिहास की गति बदल जाती है । महात्मा गाँधी के नेतृत्व में लड़े गये स्वतंत्रता आंदोलन में संसार ने भारतीय संस्कृति के १०००० वर्ष की साधना के नवनीत को चिंतन और कर्म के रूप में देखा । संसार के हर पहलू पर गाँधी जी की छाप मौजूद है ।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अंतर्गत काँग्रेस सोसलिस्ट पार्टी का जन्म १९३३ में नासिक जेल में हुआ । जहाँ साहस और उमंग से भरे आजादी के आंदोलन के सिपाही जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, युसुफ़ मेहर अली, मीनू मसानी और अशोक मेहता इक्ट्ठे हुए । तब उम्र में सबसे छोटे अशोक मेहता २१ वर्ष और जयप्रकाश नारायण ३० वर्ष के थे । स्वाधीनता आंदोलन के जगमगाते हुए सितारे जवाहरलाल नेहरू स्वाधीनता आंदोलन के दौरान ही काँग्रेस को समाजवाद की राह ले जाना चाहते थे । उन्हें अक्टूबर १९३३ में ही "हिन्दुस्तान किस ओर" के नाम से एक लेख प्रकाशित किया था ।
समाजवादी पार्टी के सब नेता अन्यतम देश-भक्त राष्ट्रवादी, धर्म-निरपेक्ष और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाले थे । लेकिन नव जवान होने के कारण देश और समाज की परिस्थितियों का आकलन कर धेर्य रखने की क्षमता नहीं थी । इसकी झलक महात्मा गाँधी के पत्र में मिलती है जो उन्होंने १७ अगस्त १९३४ को पंडित नेहरु को लिखा था ।
"समाजवादियों का हद से ज्यादा ख्याल किया गया है लेकिन एक जमात के नाते मेंने उन्हें जल्दबाज पाया है अगर मैं तेज नही चल सकता तो मुझे उनसे रूकने को और मुझे अपने साथ-साथ ले चलने को कहना ही चाहिये ।"
व्यक्तिगत अहंकार नेता के प्रति अविश्वास और संगठन का अभाव समाजवादियों की जन्मजात कमजोरी है और यह बीमारी इतनी जबरदस्त है लोहिया और जयप्रकाश के उत्तराधिकारी
मुलायम सिंह यादव, जार्ज फ़र्नाडिस, और शरद यादव की निगाह में देश में कहीं अन्याय, शोषण या कोई अन्य खराबी है वह केवल बिहार में ही है । उनकी तरकश के सारे तीर लालू प्रसाद की छाती को भेदने के लिये ही निकलते हैं । इसके लिये उन्हें संप्रदायवादी और फ़ासिस्ट भारतीय जनता पार्टी की महफ़िल में बैठने में भी कोई एतराज़ नहीं है । यही कारण है की एक दिन जिस समाजवादी पार्टी के नेताओं को सारा राष्ट्र नेहरू और काँग्रेस के विकल्प के रूप में देखता था और उनके वंशज आज यादवी संघर्ष के कारण इतिहास के कुड़ेदान में फ़ेंके जाने की दिशा में अग्रसर हैं ।
मध्य प्रदेश और होशंगाबाद जिला भी महात्मा गाँधी के नेतृत्व में लड़े गये, स्वाधीनता आंदोलन से अछूता नहीं रहा । राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी, पंडित भवानी प्रसाद मिश्र, लाला अर्जुन सिंह, श्री सैयद अहमद, श्री नन्दकिशोर यादव, श्री नन्हेंलाल इत्यादि कांग्रेज के सिपाही थे तो समाजवादी प्रो. महेशदत्त मिश्रा, सुकुमार पगारे, दुर्गाप्रसाद जैसवाल और हरि विष्णु कामथ होशंगाबाद जिले की ओर से स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय यज्ञ में अपनी आहुति दे रहे थे । सन १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के समय श्री हरि विष्णु कामथ नरसिंहपुर के कलेक्टर थे और श्री आर.के पाटिल बैतूल के । इन दोनों ने आई.सी.एस. की अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर जेल यात्रा की । श्री हरि विष्णु कामथ १९५२ के प्रथम आम चुनाव से लेकर आपातकाल के बाद हुए १९७७ के आम चुनाव तक लोकसभा के समाजवादी पक्ष के उम्मीदवार रहे । स्व. ठाकुर निरंजन सिंह की संगठन क्षमता और स्व. कामथ साहब की लोकप्रियता ने इस नर्मदांचल को समाजवादियों का गढ़ बना दिया था । कामथ जी एक महान देशभक्त कट्टर सिद्धांत्वादी, ईमानदार और सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यॊं के मसीहा थे । जिस समय कामथ जी राजनीति में सक्रिय थे उस समय कांग्रेस में होना सत्ता में होने के बराबर था । सन १९६२ में रामराज्य परिषद के नाम पर लोकसभा का उम्मीदवार प्रभावती राजे ने क्षेत्र में साम्प्रदायिकता का विष फ़ैलाया लेकिन कामथ जी ने द्र्ढ़ता पूर्वक साम्प्रदायिकता का मुकाबला किया और उसे पैर जमाने का मौका नहीं दिया । यह इतिहास का अजीब व्यंग्य है कि कामथ जी जैसे लोगों के अभाव के कारण नर्मदांचल में ही नहीं पूरे मध्यप्रदेश में साम्प्रदायिक और फ़ासिस्टवादी ताकतों ने अपने पैर जमा लिये । प्रभावती राजे की नई अवतार बहन उमा भारती राम मंदिर के नाम पर साम्प्रदायिक विष वमन करने के लिये ख्याति प्राप्त कर चुकी है । महान हिन्दू धर्म को कलंकित करने वाली घटना बाबरी मस्जिद के ध्वंस के समय, ध्वंस के आनंद से उन्मत्त होकर "एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो" का नारा लगाते हुए मुरली मनोहर जोशी की पीठ पर चढ़ने वाली उमा भारती लिब्राहन आयोग में भोलेपन से बयान दे रही है मैं तो मस्जिद बचाने गई थी । वे आज मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री हैं ।
कामथ जी एक निस्प्रह और फ़क्कड़ आदमी थे । गेहुँआ रंग, लम्बी काया, चेहरे पर बिखरी हुई दाढ़ी, लम्बा कुर्ता और फ़ुलपेन्ट पहने खाली जेब कामथ जी का व्यक्तित्व समाजवाद की जीती जागती मिसाल था । १९७७ में आपातकाल के बाद जब लोकसभा चुनाव का मोका आया तब हमने अपने साथियों के साथ विचार कि क्या किया जाये । आम जनता आपातकाल के आतंक के कारण भयभीत थी, कोई बात करने के लिये भी तैयार नहीं था । साथियों के साथ निर्णय किया कि चुनाव का परिणाम कुछ भी हो अगर नये आदमी को उम्मीदवार बनाया गया तो यह बताना पड़ेगा कि यह आदमी कौन है इसीलिये कामथ जी से ही अनुरोध किया जाये कि वे चुनाव लड़ें और वे अपनी अधिक आयु के कारण चुनाव लड़ने से इंकार कर चुके थे । साथियों के साथ जब श्री कामथ जी से मेनें अनुरोध किया तब फ़क्कड़ कामथ जी ने अपनी जेब झाड़ते हुए कहा, गुप्ता जी ५० रूपये जेब में हैं और आप लोकसभा चुनाव की बात कर रहें हैं । यह सुनते ही मैं तुरंत लौटकर घर आया ५०० रुपये की राशि घर से लेकर जमानत जमा हुई, कामथ जी उम्मीदवार हुए । जनता जनार्दन के अपूर्व सहयोग से बगैर ५०रू. भी खर्च किये, कामथ जी लोकसभा का चुनाव जीते ।
सन १९२० में दक्षिण आफ़्रिका से लौटे महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जब पूरा देश, हिन्दू-मुसलमान, बुद्धिजीवी, मज़दूर-किसान अंग्रेजों के विरूद्ध आजादी की लड़ाई लड़ रहा था । तब अंग्रेजों का हित साधने के लिये मुस्लिम लीग के साथ १९२५ पैदा हुआ राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ हिन्दू मुसलमानो में फ़ूट डालकर दंगे करवा रहा था । पूरे राष्ट्रीय आंदोलन में यही द्रश्य रहा की कामथ जी जैसे लाखों देशभक्त जेल यात्रा करते रहे और संघ के स्वंय सेवक दंगे कराते रहे । १९७५ में जब देश में आपातकाल लगा तब स्वाधीनता आंदोलन की परंपरा के अनुरूप चंडीगढ़ जेल में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने अपनी डायरी में लिखा "क्या अब यह इतिहास का एक व्यंग्य बनकर रह जायेगा । सब जी हजूर कायर बुजदिल तो जरूर हँसते होगें हम पर, कि आसमान के सितारे तोड़ने चले थे और अब जा गिरे हैं नरक में । लेकिन दुनिया में जो कुछ किया है वह सितारे तोड़ने वालों ने ही किया है, चाहे भले ही उसके लिये उन्हें प्राणों का मूल्य चुकाना पड़ा है ।" उसी समय कामथ साहब देवलाली जेल में बंद थे । तब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तत्कालीन सर-संघ चालक स्व. बाला साहब देवरस, संघ की परंपरा के अनुरूप श्रीमति इंदिरा गाँधी को पत्र लिखकर उनके २० सूत्रीय कार्यकृम ही नहीं अपितु स्व. संजय गाँधी के ४ सूत्रीय कार्यकृम की शान में कसीदे कस रहे थे । ये वही संजय गाँधी हैं जिनको तात्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष स्व. देवकांत जी बरूआ ने चाटुकारिता की सारी मर्यादायें तोड़ते हुए स्वामी विवेकानंद का अवतार कहा था । जिनकी पत्नी और स्व. इंदिरा गाँधी की छोटी बहू श्रीमति मेनका गाँधी अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर उसके हरम की शोभा बढ़ा रही है । यही वह समय है जब नर्सिंहगढ़ जेल में बंद समाजवादी श्री शरद यादव और मधु लिमये स्वाधीनता आंदोलन की परंपरा के अनुरूप जेल से ही लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र भेज रहे थे और संघ के स्वयं सेवक माफ़ी नामे भेज-भेजकर सेकड़ो रीम कागज खर्च कर रहे थे । स्वाधीनता आंदोलन की परंपरा थी कि गाँधी के किसी सिपाही ने कभी अंग्रेजों की अदालतों में कभी मुकदमे नहीं लड़े । लेकिन स्वयं सेवकों को चरित्र, त्याग, सयंम और बहादुरी की शिक्षा और संस्कार देने का दावा करने वाले संघ के स्वयं सेवक स्वनाम धन्य, विकास पुरूष प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाचपेयी और लोह पुरूष उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण अडवानी ने बेंगलोर जेल से अपनी रिहाई के लिये उच्चतम न्यायलय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत की ।
प्रधानमंत्री की तुकबंदीयों में काव्यरस की खोज कर सत्ता की चौखट पर नर्तन करने वाले दरबारी और चाटुकार महाकवि जयशंकर प्रसाद की इस उक्ति को कैसे समझेगें कि "कविता करना अत्यंत पुन्य का फ़ल है" । महाकवि निराला की यह पंक्तियाँ इस सत्य को उदघाटित कर रहीं हैं की जव ह्रदय ही निर्मल नहीं तब कविता कैसे?
"तुम तुंग हिमालय श्रंग, और मैं चंचल सुर-सरिता ।
तुम विमल ह्र्दय उच्छ्वास, और मैं कांति-कामिनी कविता ।"
कविता वह नहीं जिसे अटल जी कहते हैं । कविता वह है, जिसे स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष के दिनों में राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी ने कही थी और जिसने राष्ट्रीय मानस में संघर्ष की ज्योति जगाई थी ।
"मुझे तोड़ लेना वन माली, उस पथ पर तुम देना फ़ेंक ।
मातॄभूमी पर शीश चढ़ाने जिस पथ जायें वीर अनेक ।"
कविता वह है जिसे अपातकाल के आंतक के सन्नाटे को चीरते हुए कविवर भावानी प्रसाद मिश्र ने कही थी ।
"बहुत नहीं थे सिर्फ़ चार कौए थे काले ।
उनने यह तय किया कि सारे उड़ने वाले उनके ढ़ंग से उड़े, खायें और गायें
जिसको वो त्यौहार कहें सब उसे मनायें ।
कभी-कभी यह हो जाता है दुनिया में, दुनिया भर के गुण दिखने लगते हैं, अवगुणियों में ।"
राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी और कविवर भावानी प्रसाद मिश्र ने नर्मादांचल में जन्म लेकर इसे गौरवान्वित किया है ।
समाजवादीयों के व्यक्तिगत अहंकार की आज देश को कितनी कीमत चुकानी पड़ रही है कि धर्म निरपेक्षता और लोकतंत्र के मसीहा समतावादी समाज की रचना के लिये "सं.सो.पा. ने बाँधी गाँठ पिछड़े पावें सौ में साठ" का नारा देने वाले डाँ. राममनोहर लोहिया के चेले जार्ज फ़र्नाडिंस आज फ़ासिस्ट और सांप्रदायिक भारतीय जनता पार्टी में तबला बजा रहें हैं । यह हमारा सौभाग्य है कि स्वाधीनता आंदोलन में अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले गांधी के सिपाही श्री मन्नूलाल चौधरी, श्री जुगल किशोर सोनी, श्री पन्नालाल जी मालवीय, श्री एन्नालाल जी डेरिया और श्री प्रेम नारायण व्यास अभी मौजूद हैं । उनके श्री चरणों में मेरा प्रणाम
होशंगाबाद जिले की राजनीति में उच्च मानवीय मूल्यों की मशाल जीवन के अंतिम क्षण तक अपने मजबूत हाथों में संभालने वाले श्री हरिविष्णु कामथ को शत शत नमन ।
"स्व. श्री हरिविष्णु कामथ और भावानी प्रसाद मिश्र की जयंती के अवसर पर भावभीनी श्रद्धाँजली"
Saturday, February 3, 2007
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